जानलेवा ब्रेन कैंसर को ख़त्म कर सकती है यह भारतीय लम्बी काली मिर्च ‘पिप्पली’, स्टडी में हुआ ख़ुलासा
कैंसर सबसे जानलेवा और लाइलाज बीमारियों में से एक है। दुनियाभर में हर साल लाखों लोगों को कैंसर के कारण अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है आकंड़ों की बात करें तो 2018 में 90 लाख से ज़्यादा लोगों की कैंसर से मौत हुई।
ब्रेन कैंसर की बात करें तो यह कैंसर का दुर्लभ लेकिन ख़तरनाक प्रकार है. इससे पीड़ित बहुत कम लोग जीवित बच पाते हैं। ब्रेन कैंसर कई प्रकार के होते हैं। जिनमें से ग्लियोब्लास्टोमा मल्टीफार्म (GBM) ब्रेन कैंसर का सबसे जानलेवा प्रकार है और इसका कोई प्रभावी इलाज भी नहीं है। लेकिन राहत की ख़बर यह है कि हाल ही में हुई एक स्टडी में हमारे किचन में पाए जाने वाले एक मसाले में इस जानलेवा कैंसर को ख़त्म करने के गुण पाए गए हैं।
यह स्टडी मुख्य रूप में भारत में पाए जाने वाली लंबी काली मिर्च यानी पिप्पली पर की गई है। पिप्पली मसालों में शामिल होने के साथ ही औषधीय गुणों से भी भरपूर होती है. अब पिप्पली के अनगिनत फ़ायदों में यह नया फ़ायदा भी जुड़ गया है। स्टडी के अनुसार पिप्पली में पाइपरलोंग्यूमाइन नाम का रासायनिक यौगिक पाया जाता है, जो कैंसर के कई तरह के ट्यूमर के साथ ही ग्लियोब्लास्टोमा के खिलाफ़ भी बेहद प्रभावी है।
पेंसिल्वेनिया यूनिवर्सिटी में अंतर्राष्ट्रीय शोधकर्ताओं द्वारा की गई इस स्टडी में यह खुलासा हुआ है कि पाइपरलोंग्यूमाइन कैसे टीआरपीवी2 प्रोटीन को बांधता है और इसकी गतिविधि को रोक देता है. टीआरपीवी2 प्रोटीन ग्लियोब्लास्टोमा के बढ़ने के लिए ज़िम्मेदार होता है। चूहों पर की गई इस स्टडी में वैज्ञानिकों ने पाया कि पाइपरलोंग्यूमाइन के इलाज से ग्लियोब्लास्टोमा ट्यूमर घट गया था और दो चूहों की जिंदगी बढ़ गई थी। साथ ही पाइपरलोंग्यूमाइन ने इंसानी मरीज के शरीर से ली गई ग्लियोब्लास्टोमा कोशिकाओं को भी नष्ट किया. स्टडी की वरिष्ठ सह-लेखक वेरा मोइसीन्कोवा-बेल, पीएचडी के अनुसार “इस स्टडी से हमें यह और ज़्यादा स्पष्ट हुआ कि ग्लियोब्लास्टोमा के खिलाफ़ पाइपरलोंग्यूमाइन कैसे काम करता है और इसके ज़रिए हम और ज़्यादा प्रभावी इलाज तैयार कर सकते हैं”।
यह स्टडी कई चरणों में पूरी की गई। स्टडी की शुरुआत में इस बारे में जांच-पड़ताल की गई कि पाइपरलोंग्यूमाइन से कैंसर-विरोधी प्रभाव कैसे पैदा होता है. यह टीआरपीवी2 को बढ़ने से कैसे रोकता है। दूसरे भाग में इस पर जाँच-पड़ताल हुई कि पाइपरलोंग्यूमाइन असल में टीआरपीवी2 के किस हिस्से से बंध जाता है और इसकी गतिविधि को रोकता है।
ग्लियोब्लास्टोमा जैसे ब्रेन कैंसर का इलाज सामान्य दवाइयों से मुश्किल होता है. क्योंकि दवाई आसानी से खून से दिमाग में नहीं जाती है। इसलिए टीम ने ऐसी व्यवस्था की कि पाइपरलोंग्यूमाइन को भरकर प्रत्यारोपित किया जा सके. दो चूहों पर की गई इस स्टडी में देखा गया कि ग्लियोब्लास्टोमा पीड़ित इन चूहों में प्रत्यारोपण के ज़रिए 8 दिनों तक ट्यूमर के हिस्से में पाइपरलोंग्यूमाइन रिलीज़ करने से ग्लियोब्लास्टोमा लगभग पूरी तरह नष्ट हो गया और ये चूहें ऐसे अन्य चूहों से ज़्यादा समय तक जिंदा रहें, जिन्हें इलाज नहीं मिला। शोधकर्ताओं को इंसानी मरीज की ग्लियोब्लास्टोमा कोशिकाओं में भी ऐसे ही परिणाम देखने को मिलें। शोधकर्ताओं की टीम इस पर और काम कर रही है, ताकि आगे चलकर ग्लियोब्लास्टोमा के मरीजों पर क्लिनिकल ट्रायल के ज़रिए जांच करने के दरवाजे खुल पाए।
पिप्पली के कैंसर-विरोधी गुणों पर पहले भी कुछ स्टडी हो चुकी हैं. 2017 में अमेरिकी वैज्ञानिकों द्वारा की गई स्टडी में भी यह खुलासा हुआ था कि पिप्पली में मौजूद पाइपरलोंग्यूमाइन ट्यूमर में पाए जाने वाले एंजाइम को बनने से रोकता है। इसका उपयोग प्रोस्टेट कैंसर, स्तन कैंसर, कोलन कैंसर और ब्लड कैंसर सहित अन्य कैंसर में फायदेमंद हो सकता है।
कई लोगों ने शायद आज से पहले लंबी काली मिर्च यानी पिप्पली का नाम भी नहीं सुना होगा. लेकिन बता दें कि पिप्पली को जड़ी-बूटी माना जाता है और कई बीमारियों में इसका उपयोग भी किया जाता है। पिप्पली छोटी और बड़ी दो तरह की होती है. इसका असली नाम पइपर लांगम है और इसके अलग-अलग भाषाओँ में कई अलग नाम भी है।
पिप्पली के फ़ायदों की बात की जाए तो यह तमाम तरह की बीमारियों के लिए लाभकारी हैं और इसके लाभों की सूची बहुत लंबी है। पिप्पली दांतों से जुड़ी कई तरह की बीमारियों से राहत देती है। यह जुकाम-खांसी से लेकर सांस की तकलीफ़ में भी फ़ायदेमंद होती है। यह पाचन से जुड़ी सभी समस्याओं को दूर करती है और पूरे पाचन-तंत्र को ठीक रखती है। पिप्पली के सेवन से बुखार, अनिद्रा, उल्टी, मोटापा, हिचकी, बवासीर, सिरदर्द, आँखों की तकलीफ, एनीमिया, मासिक धर्म और प्रसव से जुड़ी तकलीफें, साइटिका, त्वचा रोग, लीवर की तकलीफ, दिल की बीमारियों सहित अन्य कई समस्याओं से राहत मिलती है।